गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्डधारी भारतीय राजनीति के मौसम वैज्ञानिक की कहानी:
राजनीति के मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का दिल्ली के एस्कार्ट अस्पताल में 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और हाल ही में उनकी हार्ट सर्जरी हुई थी। उनके बेटे चिराग पासवान ने एक ट्वीट करके अपने पिता के निधन की जानकारी दी. उन्होंने लिखा कि ”पापा अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं। मिस यू पापा…रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan), फिलहाल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए (NDA) सरकार में उपभोक्ता मामलों तथा खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। 5 जुलाई 1946 को खगरिया जिले के शाहरबन्नी के एक दलित परिवार में जन्मे और जेपी आंदोलन से भारतीय राजनीति में उभरे पासवान की गिनती देश के कद्दावर नेताओं में होती थी।
रिकॉर्ड: 11 चुनाव, 9 बार सांसद, 6 सरकारों में मंत्री और 50 साल का राजनीतिक जीवन
बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी (झांसी) (Bundelkhand University, Jhansi) से एमए और पटना यूनिवर्सिटी (Patna University) से एलएलबी करने वाले पासवान 1969 में बिहार के राज्यसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के कैंडिडेट के तौर पर चुनाव जीत सांसद बने और तब से मृत्यु तक नौ बार सांसद रहे. अपने 50 साल के राजनीतिक जीवन में केवल 1984 और 2009 में ही उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा. 1977 के बाद 1980 के चुनाव में भी आराम से जीतकर पासवान ने संसद और केंद्रीय राजनीति में अपनी उपस्थिति बनाए रखी, लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में वो चुनाव हार गए. उसी समय देश में दलित उत्थान की राजनीति ने ज़ोर पकड़ा और पासवान ने हरिद्वार, मुरादाबाद जैसी सीटों पर हुए उपचुनाव में जाकर अपनी दलित नेता की छवि मज़बूत करने की कोशिश की और बिहार के बाहर भी राजनीति की राह बनाई और दिल्ली से जुड़े रहे.
पासवान देश के एकमात्र नेता हैं जो 6 प्रधानमंत्रियों की सरकार में मंत्री रहे. 1989 के बाद से नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की यूपीए – 2 की सरकार को छोड़, वो हर प्रधानमंत्री की सरकार में मंत्री रहे. पासवान के नाम एक और रिकॉर्ड दर्ज है, सबसे अधिक समय तक मंत्री रहने का रिकॉर्ड. वो तीसरे मोर्चे की सरकार में, कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार में और बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार में भी. पासवान अपने सियासी करियर में 11 चुनाव लड़े और 9 चुनाव जीतने में सफल रहे. पहली बार वह 1989 में वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बने थे. दूसरी बार 1996 में देवगौड़ा और तीसरी बार गुजराल सरकार में वह रेल मंत्री बने थे. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रामविलास पासवान संचार मंत्री थे और 2004 में मनमोहन सरकार में रसायन मंत्री बने.
दरअसल, जब रामविलास पासवान एनडीए सरकार में मंत्री थे, तब 2002 के गुजरात दंगों को लेकर पासवान ने सरकार से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया लेकिन उस घटना के 12 साल बाद 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार में वह केंद्रीय मंत्री बनें. पासवान 2014 में एनडीए में शामिल हुए और नरेंद्र मोदी की सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री बने.
विश्वनाथ प्रताप सिंह से लेकर, एचडी देवगौड़ा, आईके गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की सरकार में अपनी जगह बना सकने के उनके कौशल पर ही कटाक्ष करते हुए एक समय में उनके साथी और बाद में राजनीतिक विरोधी बन गए लालू प्रसाद यादव ने उन्हें राजनीति का ‘मौसम वैज्ञानिक’ कहा था. कहा जाता है, अपने सारे राजनीतिक जीवन में पासवान केवल एक बार हवा का रुख़ भांपने में चूक गए, जब 2009 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ झटक लालू यादव का हाथ थामा और उसके बाद अपनी उसी हाजीपुर की सीट से हार गए जहाँ से वो रिकॉर्ड मतों से जीतते रहे थे. लेकिन उन्होंने अपनी उस भूल की भी थोड़ी बहुत भरपाई कर ली, जब अगले ही साल लालू यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस की मदद से उन्होंने राज्यसभा में जगह बना ली.
चुने गए डीएसपी, बन गए राजनेता:
बिहार के खगड़िया ज़िले में एक दलित परिवार में जन्मे रामविलास पासवान पढ़ाई में अच्छे थे. उन्होंने बिहार की प्रशासनिक सेवा परीक्षा पास की और वे पुलिस उपाधीक्षक यानी डीएसपी के पद के लिए चुने गए. लेकिन उस दौर में बिहार में काफ़ी राजनीतिक हलचल थी. और इसी दौरान राम विलास पासवान की राजनीति में एंट्री हुई. 1969 में पासवान ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर अलौली सुरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव जीत विधायक बनें. पासवान बाद में जेपी आंदोलन में भी शामिल हुए और 1975 में लगी इमरजेंसी के बाद लगभग दो साल जेल में भी रहे, लेकिन शुरुआत में उनकी गिनती बिहार के बड़े युवा नेताओं में नहीं होती थी. 1977 की रिकॉर्ड जीत के बाद रामविलास पासवान ने संसद के मंच का अच्छा इस्तेमाल किया. पासवान की गिनती सबसे ज़्यादा सवाल पूछने वाले नेताओं में होती थी. वो हर मुद्दे पर सवाल पूछते थे, जिससे उनकी छवि तेज़ी से बदली और फिर जो नए नौजवानों की लीडरशिप उभरी, उसमें वो शामिल रहे.
जातिगत वोटबैंक के ब्रम्हास्त्र से सबको झुकाते और रिझाते रहे:
पासवान वोट का ध्रुवीकरण उनकी बहुत बड़ी ताक़त बन गई क्योंकि अगर किसी भी नेता के पास 10 फ़ीसदी वोट हैं तो राजनीति में उनकी उपेक्षा नहीं हो सकती. रामविलास पासवान ने इसी ताक़त के दम पर वर्ष 2000 में आकर अपनी अलग राह पकड़ी और जनता दल (यूनाइटेड) से टूटकर अपनी अलग पार्टी बनाई, जिसका नाम रखा लोक जनशक्ति पार्टी. यही जातिगत वोटबैंक का वो ब्रम्हास्त्र था, जिसके बल पर पासवान सबको झुकाते और रिझाते रहे. यही कारण था कि जब 2019 में लोकसभा के आम चुनाव हुए तब अमित शाह और मोदी जैसे राजनीति के धुरंधरों को भी पासवान के आगे झुकना पड़ा. पासवान ने अपनी पार्टी के लिए लोकसभा कि 6 सीटें हासिल तो की ही, साथ ही असम से अपनी पार्टी के लिए राज्यसभा की एक सीट भी हासिल कर ली.
नौकरशाही से काम कराने के पक्के उस्ताद थे पासवान :
रामविलास पासवान सबसे पहले वीपी सिंह सरकार में श्रम मंत्री बने. उसके बाद से उन्होंने अलग-अलग सरकारों में रेल, संचार, खदान, रसायन और उर्वरक, उपभोक्ता व खाद्य जैसे मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी संभाली. वह यूपीए सरकार में रसायन एवं खाद्य मंत्री और इस्पात मंत्री बने. पासवान जब अगस्त 2010 में बिहार राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए तो कार्मिक तथा पेंशन मामले और ग्रामीण विकास समिति के सदस्य बनाए गए थे. बिहार में रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र हाजीपुर में रेलवे का क्षेत्रीय कार्यालय खुलवाया. इसमें उनका बड़ा योगदान था और अधिकारियों से किस तरह से दबाव डालकर काम करवाया जा सकता है, वो उनको बख़ूबी आता था. रामविलास पासवान कहते थे कि विकास से संबंधित कोई भी बात कहने पर नौकरशाह कोई ना कोई अड़ंगा डाल देते थे, तो हमने ये रास्ता निकाला कि हम उनसे ये कहते ही नहीं थे कि ये काम होगा कि नहीं होगा, बल्कि हम उनसे कहते थे कि ये काम होगा और आपको रास्ता निकालना ही है, हमको तर्क नहीं चाहिए, तो जब हमने ये रवैया लिया तो हम काम करवा सके.
परिवार और परिवारवाद:
रामविलास पासवान की राजनीति के साथ-साथ उनके परिवार की भी ख़ूब चर्चा होती रही है. उन्होंने दो शादियाँ कीं. उनकी पहली पत्नी ग्रामीण पृष्ठभूमि की थीं और उनपर तोहमत लगता रहा कि उन्होंने अपनी पत्नी को गाँव में छोड़ दिया. उनसे उन्हें दो बेटियाँ हैं. राम विलास पासवान ने नामांकन पत्र भरते समय जो जानकारी दी उसके अनुसार उन्होंने पहली पत्नी राजकुमारी देवी को 1981 में तलाक़ दे दिया. कुछ साल बाद उन्होंने दूसरा विवाह किया. उनकी दूसरी पत्नी रीना शर्मा एयरहोस्टेस थीं. चिराग पासवान के अलावा दूसरी पत्नी से उन्हें एक और बेटी हुई. परिवार के प्रति पासवान का प्रेम उनकी राजनीति पर भी हावी रहा. इसकी बानगी मिलती है 2019 के लोकसभा चुनाव से, जब पार्टी ने जिन छह सीटों से चुनाव लड़ा उनमें तीन पासवान के रिश्तेदार थे. बेटा चिराग पासवान और दो भाई पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान. तीनों ही जीते. फिर रामविलास पासवान भी राज्यसभा पहुँच गए और इस तरह संसद में सबसे बड़ा कोई परिवार था तो राम विलास पासवान का परिवार था. बाद में उन्होंने अपने बेटे चिराग़ को पार्टी का अध्यक्ष बनाया तो भाई के बेटे प्रिंस राज को बिहार में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष. रामविलास पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे. अस्वस्थ रहने की वजह से वह राजनीति में सक्रिय नहीं रहते थे, इसलिए उन्होंने पार्टी की जिम्मेदारी बेटे चिराग पासवान को सौंप दी थी. अब चिराग ही पार्टी को संभाल रहे थे. राम विलास पासवान अपनी पार्टी के तमाम फैसलों को लेने के लिए चिराग को पहले ही अधिकृत कर चुके हैं, ताकि आगे चलकर चिराग को कोई दिक्क्त न हो.
चुने गए डीएसपी, बन गए विधायक, अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते रहे…..
बिहार के खगड़िया ज़िले में एक दलित परिवार में जन्मे रामविलास पासवान पढ़ाई में अच्छे थे. उन्होंने बिहार की प्रशासनिक सेवा परीक्षा पास की और वे पुलिस उपाधीक्षक यानी डीएसपी के पद के लिए चुने गए. लेकिन उस दौर में बिहार में काफ़ी राजनीतिक हलचल थी. और इसी दौरान राम विलास पासवान की राजनीति में एंट्री हुई. 1969 में पासवान ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर अलौली सुरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव जीत विधायक बनें. पासवान बाद में जेपी आंदोलन में भी शामिल हुए और 1975 में लगी इमरजेंसी के बाद लगभग दो साल जेल में भी रहे, लेकिन शुरुआत में उनकी गिनती बिहार के बड़े युवा नेताओं में नहीं होती थी. 1977 की रिकॉर्ड जीत के बाद रामविलास पासवान ने संसद के मंच का अच्छा इस्तेमाल किया. पासवान की गिनती सबसे ज़्यादा सवाल पूछने वाले नेताओं में होती थी. वो हर मुद्दे पर सवाल पूछते थे, जिससे उनकी छवि तेज़ी से बदली और फिर जो नए नौजवानों की लीडरशिप उभरी, उसमें वो शामिल रहे.
देश के एक मात्र नेता हैं जिन्होंने सर्वाधिक मतों से जीतने का दो बार रिकॉर्ड बनाया:
इमरजेंसी के बाद 1977 में जब भारतीय राजनीति ने नयी करवट ली तो रामविलास पासवान अचानक बुलंदियों पर पहुंच गये. जनता पार्टी ने उन्हें 1977 में हाजीपुर सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया. उस समय बहुत लोग उन्हें जानते तक नहीं थे. लेकिन पासवान ने कांग्रेस के उम्मीदवार बालेश्वर राम को 4 लाख 25 हजार 545 मतों के विशाल अंतर से हराकर सर्वाधिक मतों से जीतने का नया भारतीय रिकॉर्ड बना दिया. इस उपलब्धि के लिए उनका नाम गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया. पासवान इसके आठ साल पहले ही विधायक का चुनाव जीत चुके थे, लेकिन 1977 की उस जीत ने रामविलास पासवान को राष्ट्रीय नेता बना दिया और उस रिकॉर्ड जीत ने इंटरनेशनल स्टार. लेकिन रामविलास यहीं नहीं रुके. उन्होंने अपने ही रिकॉर्ड को 1989 में एक बार फिर तोड़ दिया. वी पी सिंह ने मिस्टर क्लीन कहे जाने वाले राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स का मुद्दा उठाकर कांग्रेस के खिलाफ जनमोर्चा तैयार किया. 1989 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान फिर हाजीपुर लोकसभा सीट पर खड़ा हुए और कांग्रेस के महावीर पासवान को 5 लाख 4 हजार 448 मतों के विशाल अंतर से हराकर अपना ही पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया. इस तरह रामविलास पासवान देश के एक मात्र नेता हैं जिन्होंने सर्वाधिक मतों से जीतने का दो बार रिकॉर्ड बनाया
इस तरह टूटा पासवान का रिकॉर्ड
1991 के लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने आंध्र प्रदेश की नांद्याल सीट पर भाजपा के बंगारू लक्ष्मण को 5 लाख 80 हजार मतों से हराकर पासवान का रिकॉर्ड तोड़ दिया. इस तरह दो साल बाद ही पासवान का रिकॉर्ड टूट गया. इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल के सीपीएम नेता अनिल बसु ने पश्चिम बंगाल के आरामबाग सीट से 2004 में भाजपा के उम्मीदवार स्वप्न नंदी को 5 लाख 92 हजार 502 मतों के विशाल अंतर से हराकर राव का रिकॉर्ड तोड़ दिया. लेकिन बसु के नाम भी यह रिकॉर्ड अधिक दिनों तक नहीं रहा. 2014 में बीड सीट पर हुए उपचुनाव में गोपीनाथ मुंडे की की बेटी प्रीतम मुंडे ने 6 लाख 96 हजार 321 मतों के अंतर से जीत हासिल कर सारे पुराने कीर्तिमानों को ध्वस्त करते हुए नया इतिहास रच दिया.
LJP प्रमुख पासवान के निधन पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की नेता राबड़ी देवी ने कहा है कि दशकों से उनके साथ पारिवारिक संबंध रहा है. आज हमारे घर में चूल्हा नहीं जलेगा. रामविलास पासवान के निधन से बहुत दुखी हूं. भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.